तन्हा गुजरता हूँ
ख्वाबों की लकीरों में किसे उभारता हूँ
दूर तलक नहीं है परछाई किसी की
पर किसकी राह इस कदर निहारता हूँ
आ जा मेरी पहलू में बैठ ऐ खिज़ा
तूफां से उलझा तेरा हुस्न संवारता हूँ
बेमुरव्वत हो गई है आज कल चांदनी भी
भरम दूर कर लू इसलिए दुलारता हूँ
देख ली दुनिया वालों से करके वफा
अब खुदा के ऊपर नियत बिगाड़ता हूँ
मेरी सदा के सिवा कोई आता नहीं
'दिलजले ' किसी को जब भी पुकारता हूँ
vartani ki galtiyon ko sudharein par pehli do line bahoot pyari hain.
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